सुकून की बातमत कर ऐ दोस्त..
बचपन वाला ‘इतवार’ जाने क्यूँ अब नहीं आता।
मैंने कहा बहुत प्यार आता है तुम पर..
वो मुस्कुरा कर बोले और तुम्हे आता ही क्या है।
चेहरा बता रहा था कि मारा है भूख ने,
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया।
सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हें,
कि तुम जो सीख लेते हो हम पर आज़माते हो।
वो जिनके हाथ में.. हर वक्त छाले रहते हैं..
आबाद उन्हीं के दम पर.. महल वाले रहते हैं|
ना शौक दीदार का, ना फिक्र जुदाई की,
बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग … जो, मोहब्बत नहीँ करतेँ!
मोहब्बत कर सकते हो तो खुदा से करो ‘दोस्तों’
मिट्टी के खिलौनों से कभी वफ़ा नहीं मिलती
कुछ इस तरह बुनेंगे हम अपनी तकदीर के धागे
कि अच्छे अच्छो को झुकना पड़ेगा हमारे आगे!
बहुत ज़ालिम हो तुम भी मुहब्बत ऐसे करते हो
जैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो|
मेरे अन्दर कुछ टूटा है
बस दुआ करो वो दिल ना हो…!!!!!
मुझे को अब तुझ से भी मोहब्बत नहीं रही,
आई ज़िंदगी तेरी भी मुझे ज़रूरत नहीं रही,
बुझ गये अब उस के इंतेज़ार के वो जलते दिए,
कहीं भी आस-पास उस की आहट नहीं रही|
उसे उड़ने का शौक था..
और हमें उसके प्यार की कैद पसंद थी..
वो शौक पूरा करने उड़ गयी जो..
आखिरी सांस तक साथ देने को रजामंद थी|
हर भूल तेरी माफ़ की..
हर खता को तेरी भुला दिया..
गम है कि, मेरे प्यार का..
तूने बेवफा बनके सिला दिया|
कागज़ के नोटों से आखिर
किस किस को खरीदोगे,
किस्मत परखने के लिए यहाँ आज भी
सिक्का ही उछाला जाता है!
क्यूँ करते हो मुझसे
इतनी ख़ामोश मुहब्बत..
लोग समझते है
इस बदनसीब का कोई नहीँ..
तू नहीं तो ये नज़ारा भी बुरा लगता है..
चाँद के पास सितारा भी बुरा लगता है..
ला के जिस रोज़ से छोड़ा है तुने भवँर में मुझको..
मुझको दरिया का किनारा भी बुरा लगता है..
सिलसिला उल्फत का चलता ही रह गया,
दिल चाह में दिलबर के मचलता ही रह गया,
कुछ देर को जल के शमां खामोश हो गई,
परवाना मगर सदियों तक जलता ही रह गया..!!